गंगा नदी संकट 2025: भारत की पवित्र नदी क्यों कर रही है दम तोड़ने की कोशिश?

गंगा नदी

भारत में हर पत्थर में ईश्वर को देखने की परंपरा रही है, और नदियों को देवी का स्थान प्राप्त है। इन्हीं में सबसे पूजनीय है गंगा नदी, जो न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और पारिस्थितिकी की दृष्टि से भी भारत की जीवनरेखा है। लेकिन आज यही गंगा नदी कई संकटों से घिरी हुई है। किसान, उद्योग, सरकारें और आम जनता—सब मिलकर अनजाने में गंगा को समाप्त करने की कगार पर ला खड़ा कर रहे हैं।

गंगा नदी का उद्गम और भूगोलिक विशेषताएँ

गंगा का जन्म ‘तीसरे ध्रुव’ कहे जाने वाले पश्चिमी हिमालय में स्थित गंगोत्री ग्लेशियर से होता है, जहाँ भागीरथी नदी का उद्गम होता है। 238 ग्लेशियर और 2 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में होने वाली वर्षा इसे जल प्रदान करती है। परंतु बीते 30 वर्षों में इस नदी का प्रवाह लगातार कम हुआ है।

उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में 50 से अधिक बांध और बैराज गंगा की सहायक नदियों को रोकते हैं, जिससे गंगा का मुक्त प्रवाह बाधित होता है। बांधों के कारण बनी मानव निर्मित झीलें जलवायु पर भी प्रभाव डालती हैं।

राजनीतिक स्वार्थ और सरकारी उपेक्षा

टिहरी डैम की बिजली दिल्ली, एनसीआर समेत उत्तर भारत के कई राज्यों को रोशन करती है। लेकिन इस सुविधा की कीमत हिमालयी राज्यों को चुकानी पड़ती है। बांध और कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट अब इन राज्यों की राजनीतिक अर्थव्यवस्था का हिस्सा बन चुके हैं।

गंगा मैदानों में पहुँचने के बाद कई बैराजों से गुजरती है, जिससे ज्यादातर पानी सिंचाई नहरों में चला जाता है। 6582 किलोमीटर लंबे गंगा नहर प्रणाली से 9 लाख हेक्टेयर क्षेत्र की सिंचाई होती है, लेकिन इससे गंगा हर सेकंड 250-300 घन मीटर पानी खोती है।

भूजल संकट और कृषि पर असर

नहरों से दूर किसान भूजल पर निर्भर हैं, लेकिन हरित क्रांति के बाद भूजल स्तर तेजी से गिरा है। कभी 20 फुट पर मिलने वाला पानी अब 150-200 फुट पर पहुंच चुका है और खारा होता जा रहा है। भारत विश्व का सबसे बड़ा भूजल उपयोगकर्ता है, जिसमें से 85.3% भूजल कृषि के लिए निकाला जाता है। वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे हैं कि इस गति से भूजल का दोहन जारी रहा तो पैदावार में 20-30% तक की गिरावट आ सकती है।

IIT खड़गपुर की चिंताजनक रिपोर्ट

IIT खड़गपुर की रिसर्च बताती है कि अब गंगा खुद भूजल को रिचार्ज करने के बजाय उसमें जल खो रही है। उत्तर और पूर्वी भारत में भूजल रिचार्ज की दर नकारात्मक हो चुकी है। वेटलैंड्स, जो गंगा को जल देती थीं, अब अतिक्रमण और शहरीकरण के शिकार हैं। 70% वेटलैंड्स आज संकट में हैं, जो बाढ़ को रोकने और भूजल रिचार्ज के लिए जरूरी थे।

पवित्रता पर बढ़ता प्रदूषण: श्रद्धालु भी जिम्मेदार

हर साल करीब 80,000 टन फूल गंगा में प्रवाहित किए जाते हैं। इन फूलों में प्रयुक्त कीटनाशक गंगा के जल को विषैला बनाते हैं, जिससे हैजा, हेपेटाइटिस जैसी बीमारियां फैल रही हैं। ये रसायन भूजल में मिलकर स्थायी नुकसान पहुँचा रहे हैं।

फरक्का बैराज: एक और संकट

पश्चिम बंगाल का फरक्का बैराज गाद को रोकता है, जिससे गंगा के डेल्टा क्षेत्र—सुंदरबन—में गाद की आपूर्ति कम हो गई है। इससे सुंदरबन डूबने की कगार पर है। फरक्का बैराज ने नदी के प्रवाह को अप्राकृतिक तरीके से बाधित किया है, जिससे भारत और बांग्लादेश दोनों प्रभावित हो रहे हैं।


FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)

प्रश्न 1: गंगा नदी का मुख्य संकट क्या है?
उत्तर: गंगा नदी का मुख्य संकट उसका घटता जलस्तर, भूजल का दोहन, वेटलैंड्स का नष्ट होना, और बांध-बैराज के कारण बाधित प्रवाह है।

प्रश्न 2: गंगा को प्रदूषित करने वाले मुख्य कारण क्या हैं?
उत्तर: औद्योगिक कचरा, घरेलू अपशिष्ट, धार्मिक कार्यों में बहाए जाने वाले फूल और कीटनाशकों की अधिकता इसके मुख्य कारण हैं।

प्रश्न 3: गंगा नदी को कैसे बचाया जा सकता है?
उत्तर: गंगा को बचाने के लिए वेटलैंड्स की सुरक्षा, भूजल दोहन पर नियंत्रण, प्रदूषण कम करना और प्राकृतिक प्रवाह बनाए रखना जरूरी है।

प्रश्न 4: क्या सरकार इस दिशा में कुछ कर रही है?
उत्तर: सरकार ‘नमामि गंगे’ जैसी योजनाएं चला रही है, लेकिन ज़मीनी स्तर पर इनकी सफलता सीमित है। राजनीतिक इच्छाशक्ति और पारदर्शिता की जरूरत है।

प्रश्न 5: गंगा और कृषि के बीच क्या संबंध है?
उत्तर: गंगा का जल कृषि के लिए जीवनरेखा है। जलस्तर घटने से सिंचाई प्रभावित होती है, जिससे फसलें और किसान दोनों संकट में आते हैं।


निष्कर्ष

गंगा नदी सिर्फ एक नदी नहीं, भारत की सांस्कृतिक और जैविक धरोहर है। लेकिन आज यह नदी अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है। यह समय है जब हम भावनात्मक श्रद्धा को वैज्ञानिक समझ के साथ जोड़ें और गंगा को पुनर्जीवित करें। क्योंकि अगर गंगा नहीं बची, तो भारत की आत्मा भी खतरे में पड़ सकती है।

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