महाभारत युद्ध में बलराम जी ने भाग क्यों नहीं लिया? | बलराम की तीर्थ यात्रा, नारायणी सेना और रोष की कथा

बलराम

🔹 परिचय:

महाभारत – भारतीय इतिहास का सबसे महान युद्ध, जिसमें लगभग हर राजा और योद्धा ने किसी न किसी पक्ष से भाग लिया। पर क्या आप जानते हैं कि कुछ ऐसे महान योद्धा भी थे, जिन्होंने इस युद्ध में भाग नहीं लिया? उन्हीं में से एक हैं श्री बलराम जी, भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई। बल, धर्म और संयम के प्रतीक बलराम जी ने युद्ध की बजाय तीर्थ यात्रा को चुना। आइए जानते हैं इसके पीछे की पूरी कथा।


🔸 बलराम जी ने महाभारत युद्ध में भाग क्यों नहीं लिया?

बलराम जी दोनों पक्षों – पांडव और कौरव के प्रति समान स्नेह रखते थे। वे भीम और दुर्योधन दोनों के गुरु थे और उन्हें गदा युद्ध की शिक्षा दी थी। युद्ध में किसी एक का पक्ष लेने का अर्थ दूसरे के साथ अन्याय करना होता, इसलिए उन्होंने तटस्थ रहने का निर्णय लिया।

बलराम जी ने श्रीकृष्ण को भी युद्ध में भाग न लेने की सलाह दी थी, लेकिन श्रीकृष्ण ने धर्म की स्थापना के लिए अर्जुन का सारथी बनकर युद्ध में भाग लिया।


🔸 दुर्योधन से बलराम जी का वचन और नारायणी सेना का निर्णय:

बलराम जी ने पहले ही दुर्योधन को वचन दिया था कि वे और श्रीकृष्ण इस युद्ध में शस्त्र नहीं उठाएंगे। इसी कारण श्रीकृष्ण ने दोनों पक्षों को यह विकल्प दिया:

दुर्योधन ने सेना चुनी और अर्जुन ने श्रीकृष्ण को। इस प्रकार पांडवों के साथ श्रीकृष्ण और कौरवों के साथ नारायणी सेना युद्ध में उतरे।


🔸 बलराम की तीर्थ यात्रा:

महाभारत युद्ध के दौरान बलराम जी सरस्वती नदी के तटवर्ती तीर्थ स्थलों की यात्रा पर निकल गए। यह निर्णय धर्म और न्याय की रक्षा के लिए था। वे नहीं चाहते थे कि उनके दोनों शिष्यों (भीम और दुर्योधन) में से किसी को भी आहत करें।


🔸 भीम और दुर्योधन के युद्ध में बलराम जी का रोष:

जब बलराम जी तीर्थ यात्रा से लौटे, तब युद्ध अपने अंतिम चरण में था। भीम ने श्रीकृष्ण के निर्देश पर दुर्योधन की जंघा पर वार किया। इसे बलराम जी ने अन्याय और छलपूर्ण माना। उन्होंने इसे अपना अपमान भी समझा क्योंकि दुर्योधन उनके शिष्य थे।

उन्होंने श्रीकृष्ण से भी विरोध जताया लेकिन श्रीकृष्ण ने उन्हें याद दिलाया कि उन्होंने युद्ध के समय तटस्थ रहने का निर्णय स्वयं लिया था।


🔸 बलराम जी को क्यों कहा जाता है संकर्षण?

बलराम जी का जन्म देवकी के गर्भ से हुआ था लेकिन योगमाया की कृपा से उन्हें संकर्षण करके वासुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी के गर्भ में स्थानांतरित कर दिया गया। इसीलिए उन्हें ‘संकर्षण’ भी कहा जाता है।


🔸 बलराम कौन थे? कितने बलशाली थे?

बलराम को शेषनाग का अवतार माना जाता है। वे अत्यंत बलशाली थे। जरासंध जैसे बलशाली राजा को केवल बलराम ही चुनौती दे सकते थे। श्रीकृष्ण की मुस्कान और शांति जहाँ प्रसिद्ध थी, वहीं बलराम बल और क्रोध के लिए विख्यात थे।


FAQs: महाभारत में बलराम जी से जुड़े सवाल

प्रश्न 1: बलराम जी ने महाभारत युद्ध में हिस्सा क्यों नहीं लिया?
उत्तर: क्योंकि वे पांडव और कौरव दोनों को समान रूप से प्रिय मानते थे और किसी एक का पक्ष नहीं लेना चाहते थे।

प्रश्न 2: बलराम जी की नारायणी सेना क्या थी?
उत्तर: यह श्रीकृष्ण की सेना थी, जिसे दुर्योधन ने चुना जबकि अर्जुन ने श्रीकृष्ण को चुना।

प्रश्न 3: बलराम जी को संकर्षण क्यों कहते हैं?
उत्तर: क्योंकि उनका गर्भ देवकी से खींचकर (संकर्षण कर) रोहिणी के गर्भ में स्थानांतरित किया गया था।

प्रश्न 4: बलराम जी किसके अवतार माने जाते हैं?
उत्तर: वे शेषनाग के अवतार माने जाते हैं।

प्रश्न 5: बलराम जी की तीर्थ यात्रा का क्या महत्व था?
उत्तर: यह तटस्थता और धर्म का प्रतीक थी, जिसमें उन्होंने युद्ध की बजाय शांति और साधना का मार्ग चुना।


🔚 निष्कर्ष:

महाभारत जैसा महान युद्ध जहाँ धर्म-अधर्म के मध्य विभाजन था, वहीं बलराम जी का निर्णय धैर्य, तटस्थता और संयम का प्रतीक बन गया। उनके निर्णय ने यह सिखाया कि कभी-कभी युद्ध से बड़ा होता है धर्म का पालन


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